हमारी किडनी कैसी होती है?


किडनी एक व्यक्ति का सबसे खास अंग है, यह शरीर में सफाई करने का कार्य करती है। हमारे शरीर में बहुत से अपशिष्ट उत्पाद जमा हो जाते हैं, जिन्हें किडनी रक्त साफ करने समय पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकल देती है। किडनी शरीर से अम्ल, क्षार, पोटेशियम, यूरिक एसिड, अतिरिक्त शर्करा जैसे कई अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर निकलती है। तक़रीबन सभी लोग किडनी के कार्यों के बारे में जानते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग किडनी के बारे में जानते हैं। हम इस लेख में किडनी की संरचना के बारे में बात करेंगे।
किडनी की बाहरी संरचना कैसी होती है?
किडनी हमारे पेट के अंदर पीछे के हिस्से में पीठ के दोनों तरफ पसलियों में सुरक्षित तरीके स्थित होती है। किडनी, पेट के भीतरी भाग में स्थित होती हैं जिसकी वजह से बाहर से स्पर्श करने पर महसूस नहीं होती। किडनी आकार में राजमा की भांति दिखाई देती हैं। वयस्कों में एक किडनी लगभग 10 सेंटीमीटर लम्बी, 6 सेंटीमीटर चौड़ी और 4 सेंटीमीटर मोटी होती हैं। मानव शरीर की प्रत्येक किडनी का वजन लगभग 150 - 170 ग्राम होता है। दोनों किडनियों में बाएं किडनी की तुलना में दाहिनी किडनी आकार में छोटी एवं अधिक फैली हुई होती है अर्थात मोटी होती है। दाहिनी किडनी कुछ नीचे की ओर एवं बाई किडनी की तरफ फैली हुई होती है।   
इन दोनों किडनियों का भीतरी किनारा अवतल (Edge concave) और बाहरी किनारा उत्तल (Outer edge convex) होता है एवं मध्य भाग गहरा होता है। किडनियों के मध्य भाग को हायलम (Hyalum) कहा जाता है, किडनी के इसी मध्य भाग से ही रक्त वाहिकाएँ किडनी में प्रवेश करती हैं और इसी भाग से मुत्रवाहिकएं बाहर निकलती है। किडनी का का ऊपरी सिरा उध्र्व ध्रुव (Upward pole) एवं निचला सिरा निम्न ध्रुव (Low pole) कहलाता है। प्रत्येक किडनी कैप्सूल के एक आवरण में लिपटा रहता है। यह कैप्सूल तन्तु उतक से बना होता है, जिसे वृक्कीय सम्पुट (Renal capsule) कहा जाता है इस कैप्सूल में वसा संचित रहती है जिससे यह गद्दी की तरह कार्य करता हुआ वृक्कों को बाह्य आधातों (External sources) एवं चोटों से सुरक्षित रखने का कार्य करता है।
किडनी की आंतरिक संरचना :-
किडनी की बाहरी संरचना के मुकाबले उसकी आंतरिक संरचना काफी जटिल होती है, जिसे समझना काफी मुश्किल होता है। इसकी आंतरिक संरचना को तीन भागों में बाटा गया है, जोकि निम्नलिखित हैं -
1.       किडनी श्रोणी (RENAL PELVIS)
2.       किडनी मज्जा (RENAL MEDULLA)
3.       किडनी छाल (RENAL CORTEX)
1.       किडनी श्रोणी (RENAL PELVIS)
किडनी श्रोणी, किडनी का सबसे आंतरिक भाग होता है। किडनी के इसी भाग से मूत्रनली बाहर की ओर निकलती है। इस स्थान पर एक संचय स्थान होता है।
2.       किडनी मज्जा (RENAL MEDULLA)
किडनी का यह भाग मध्यभाग होता है, जिसे किडनी मज्जा कहा जाता है। किडनी के इस भाग में 8 से 18 तक की संख्या में किडनी के पिरामिड्स पाए जाते हैं। यह सभी पिरामिड्स शंकु के आकार के होते हैं। यह सभी पिरामिड्स किडनी श्रोणी में आकर खुलते हैं। इन सभी पिरामिड्स में स्थित नलिकाएं मूत्र के पुनः अवशोषण की क्रिया में मदद करती हैं।
3.       किडनी छाल (RENAL CORTEX)
यह किडनी का सबसे बाहरी भाग होता है। किडनी का यह भाग किडनी सम्पुट (capsule) से जुड़ा हुआ होता है। किडनी सम्पुट किडनी का बाहरी आवरण होता है। किडनी के इस भाग में नलिकाएं गुच्छों के रुप में अथवा जाल के रुप में फैली होती हैं।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार :-
एक तरफ जहां अंग्रेजी उपचार में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट का सहारा लेना पड़ता है, वहीं आयुर्वेद में केवल जड़ी-बूटियों कि मदद से खराब किडनी को पुनः ठीक किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा ने आयुर्वेद कि मदद से क्रिएटिनिन को कम कर उसे नीचे लाया है कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गई थी। इस समय प्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सक  डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा का नेतृत्व कर रहे हैं।
डॉ. पुनीत धवन ने  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। आज के समय में "कर्मा आयुर्वेदा" प्राचीन आयुर्वेद के जरिए  "किडनी फेल्योर" जैसी गंभीर बीमारी का सफल इलाज कर रहा है। 



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